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फिजियोथेरापिस्टों के लिए स्वतंत्र नियामक तंत्र रहने पर ही फिजियोथेरापी संवर्ग का उचित विकास हो पाएगा।

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चिकित्सकों की कमी देश में एक प्रभावी स्वास्थ्य तंत्र की राह में बड़ी बाधा है। ऐसे में मोदी सरकार ने डेंटल और आयुष चिकित्सकों को एक ब्रिज कोर्स के साथ एलोपैथिक परामर्श का रास्ता खोला है। हालांकि एलोपैथ लॉबी ने इसका कड़ा विरोध हुआ है। वहीं देश में चिकित्सकों की उपलब्धता और आवश्यकता के आंकड़े बताते हैं कि आगामी दो दशकों में भी मानक उपलब्धता के आसार नहीं है। लोकसभा की प्राक्कलन समिति ने इस समस्या के मद्देनजर एक महत्वपूर्ण अनुशंसा की थी। इसके अंतर्गत ‘फिजियोथेरेपी’ को उपचार की अहम प्रणाली के तौर पर अपनाने की बात कही थी। फिलहाल देश में इस विधा का केंद्रीय नियामक संस्थान तो बन गया जिसमें 56 तरह के अलाईड हेल्थकेयर प्रोफेशनल को शामिल किया गया है। जबकि फिजियोथेरेपी  का देश में स्नातक, परास्नातक और पीएचडी तक इसकी पढ़ाई देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में होती है। प्राक्कलन समिति ने फिजियोथेरेपी को एक पूर्णत: विकसित एवं स्वतंत्र विभाग के रूप में मान्यता देने की आवश्यकता पर जोर दिया था, समिति के अनुसार फिजियोथेरेपी प्रामाणिक चिकित्सा प्रणाली है जिसका उपयोग पीडियाट्रिक्स से लेकर जेरियाट्र...