बिहार में भौतिक चिकित्सा और व्यावसायिक चिकित्सा के क्षेत्र में रोजगार की वर्तमान स्थिति।

 भौतिक चिकित्सा,व्यावासायिक चिकित्सा के  क्षेत्र में रोज़गार वर्तमान स्थिती:-


अगर हम बात रोज़गार की करें तो इससे भयावह बात शायद ही दूसरी हो।व्यावसायिक एवम् भौतिक चिकित्सा क्षेत्र में रोज़गार की यूँ तो अपार संभावनाएं हैँ,  अनेक भौतिक चिकित्सक न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी बेहतरीन कार्य कर रहे हैं| रोज़गार को हम सरकारी क्षेत्रों तथा निजी क्षेत्रों में विभाजित कर सकते है| किन्तु यदि आप बिहार के रहने वाले हैं या निवासी हैं तो ये आपका दुर्भाग्य ही होगा की सरकार की आपको मात्र 'तकनीशियन' ही मानती है|  डिग्री धारक व्यावसायिक चिकित्सक् या भौतिक चिकित्सक अभी तक तकनीशियन के वेतमान या मानदेय पर कार्यरत है। राज्य में अब तक सरकार मात्र संविदा पर ही व्यावसायिक और भौतिक चिकित्सक को ही रोज़गार दे सकी है|1995 के बाद 25 सालों के उपरांत तकनीकी सेवा आयोग के द्वारा पहली बार नियमित नियुक्ति निकाली गई जो राज्य सरकार के असहयोगात्मक रवैयै के कारण अभी तक लटकी हुई है। बिहार में भौतिक चिकित्सा और व्यावसायिक चिकित्सा के क्षेत्र में समाज कल्याण तथा बिहार शिक्षा परियोजना के द्वारा संविदागत पदों पर इन से कार्य लिया जा रहा है जो अल्पवेतन में कार्य कर रहे है| अब सोचिये की जब प्रदेश में प्राइवेट कालेज़ रुपी कारख़ानों से हर साल औसतन 500 भौतिक चिकित्सक तथा व्यावसायिक चिकित्सक निकल रहे हैं तो ये डिग्री ले के क्या करेंगे? जब सरकार व्यावसायिक चिकित्सकों और भौतिक चिकित्सकों को रोज़गार नहीं मुहैया करवा सकती,  तो क्या नौकरी के इंतज़ार में पान की दूकान खोलेंगे या लोगों के बाल काटेंगे? क्या कोई छात्र वकालत की डिग्री ले कर सरकारी नौकरी के इंतज़ार में होटल में बरतन धोते है क्या? "नहीं ना" | समी को पता है की राज्य में सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं कितनी दुरुस्त हैं भौतिक चिकित्सक व्यावसायिक चिकित्सक  जनता को स्वास्थ्य लाभ देने के लिए कटिबद्ध है| 

हमने पाया है की जो लोग राज्य सरकार के अंतर्गत भौतिक चिकित्सा और व्यावसायिक चिकित्सा की सेवाएँ राज्य के विभिन्न ज़िलों के अस्पतालों में संविदा पर दे रहे है उनमें अपने मानदेय को ले के रोष है और राज्य में  स्वतंत्र कौंसिल ना होने की वजह से उन चिकित्सकों का मानदेय भी "तकनीशियन" स्तर का ही है|(RTI लगा के सुनिश्चित कर सकते हैं) | जरा सोचिये 4 से 7 साल पढाई के बाद आपको यह ईनाम मिले? अब सरकारी नौकरी जाने का भय कहें या निजी कारण, वे भौतिक "चिकित्सक" होते हुए भी "तकनीशियन" बनने को मजबूर हैं| यही हाल रहा तो आने वाले समय में शायद ही कोई भौतिक चिकित्सक या व्यावसयिक चिकित्सक बनना चाहेगा, पढाई में शायद ही कोई समय लगाना चाहेगा| ये तो जिक्र था सरकारी व्यवस्था का अब हम थोडा निजी क्षेत्रों की विषम परिस्तिथियों का भी विश्लेषण करेंगे| निजी क्षेत्रों में आगे बढ़ने के कई अवसर हैँ ,किन्तु वर्तमान में स्तिथि कुछ डावाडोल है| निजी कालेज़ रुपी फ़ैक्ट्रियों से निकलने वाले उन्नत व्यावसायिक और भौतिक चिकित्सक बिहार से दूर जाने यानि "पलायन" को मजबूर हैं| रोजगार की तलाश उनको अपने राज्य से दूर कर चुकी है, वे न चाहते हुए भी पलायन कर चुके है,कर रहे हैँ। हमें नहीं लगता इस महौल में कभी वे वापिस आना चाहेंगे| बिहार के होनहार व्यावसायिक और भौतिक चिकित्सक अपना राज्य छोड़ के उन राज्यों की तरफ़ रूख कर रहे है जहां वे स्वतंत्र रुप से रोज़गार कर सकें| वर्षों पहले एक स्वंत्रता के लिए महात्मा गांधी लड़े थे उसी प्रकार भौतिक  स्वतंत्र रूप से काम करने की आज़ादी मांग रहे हैं|  

       निजी क्षेत्रों में इनका बहुत अधिक दोहन होता है काम के भार के साथ ओवरटाइम, किसी भी इंसान को निचोड़ के रख देता है। कारपोर्टे अस्पतालों में भौतिक चिकित्सा विभाग ओउटसोर्से यानि ठेके पे दिए जाते है,जो की मामूली तनख्वाह पे 9 से 10 घंटे काम लेते हैँ। बेरोज़गारी, आर्थिक रूप से सक्षम न होने , विभिन्न प्रलोभन, और करपोर्टे अस्पताल की चकाचौंध के कारण वे इस जाल में फंस जाते हैं। नाम के लिए होता है की अमुख भौतिक चिकित्सक इतने बड़े अस्पताल में नौकरी करता है। एक मृग मरीचिका की तरह नया नया डिग्री धारक इस तरफ खिंचा चला आता है, हालाँकि कुछ समय कार्य करने के बाद उसकी आँखें स्वतः ही खुल जाती है। अब आपका भी आँखे खोलने का वक़्त आ गया है।

सरकार से अपेक्षा

 विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा जारी सूची में भौतिक चिकित्सा को अलग रूप से परिभाषित किया गया है तथा भौतिक चिकित्सा को ISCO कोड सं0 2264 को स्वतंत्र व्यवसाय माना गया है जो कि पराचिकित्सा के अंतर्गत नहीं आता है। इस अधिनियम के अध्याय 1/प्ररम्भिक (वर्ग-ग) और (च) के अंतर्गत तकनीशियन को परिभाषित किया गया है।

 भौतिक चिकित्सकों की सरकार से मात्र इतनी ही अपेक्षा है की बिहार राज्य को भी अन्य राज्यों जैसे दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात,इत्यादि की भाँती "स्वतंत्र भौतिक चिकित्सा परिषद्" का गठन किया जाये|मुख्यमंत्री ने  विश्व फिजियोथेरापी दिवस के अवसर पर वर्ष 2016 में विकलांग भवन, पटना में आयोजित कार्यक्रम में धोषणा किया था इस संवर्ग को डाक्टर के बराबर तथा पीएचसी तक नियुक्ति किया जाएगा मगर आज  तक नहीं व्यावसायिक चिकित्सकों, भौतिक चिकित्सकों को जिला या अनुमंडल अस्पतालों में नियुक्ति मिली पीएचसी तो छोड़ दीजिए,यदि आज हमारी नियुक्ति पीएचसी तक होती तो  अपितु प्रदेश की जनता को भी बहुत लाभ मिलता| जिससे ना केवल उच्च गुणवत्ता बल्कि आसानी से इलाज उपलब्ध् हो पायेगा| अपनी चुनी हुई सरकार से इससे ज्यादा भौतिक चिकित्सक व्यावसायिक चिकित्सक शायद ही कुछ चाहते हों| ज्ञान और आत्मविश्वास से से भरपूर भौतिक चिकित्सक व्यावसायिक चिकित्सक हर चुनौती का सामना करने को तैयार हैं जरूरत है तो सिर्फ एक दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति की, जिसकी उम्मीद में भौतिक चिकित्सक अभी तक शांत है| भौतिक चिकित्सक सरकार से बेहतर भविष्य की अपेक्षा कर रहे हैँ और सरकार  उनकी उपेक्षा।। 

Comments

  1. Abhi Bihar sarkar kumbhkarani nind mai Soye hue hai.

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  2. Pata nahi kab pt and ot ki ladai apni state council ki khatam ho gi kab jagay gyi ya sarkar

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  3. हमें एक होकर लड़ना पड़ेगा , और इसका शुरुआत जल्द ही कर देना चाहिए

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  4. Physio awareness must important in public...we should fight for right until goal achieve..

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