बिहार का एकमात्र सरकारी फिजियोथेरापी आॅकुपेशनलथेरापी काॅलेज का खस्ताहाल
विकलांग शब्द की जगह दिव्यांग ने ले ली है। लेकिन कंकड़बाग स्थित इस अस्पताल सह कालेज का नाम अभी भी विकलांग भवन अस्पताल ही चला रहे हैं। इसी के प्रांगण में है बिहार कॉलेज ऑफ फिजियोथेरेपी एंड अॉक्युपेशनल थेरेपी। मरीजों को देखने से लेकर उसके इलाज और मेडिकल के छात्र-छात्राओं की पढ़ाई की व्यवस्था है यहां। यह पटना मेडिकल कॉलेज का ही अंग है। 35 बेड के अस्पताल में फिजियोथेरेपी से जुड़े वैसे मरीज भर्ती होते हैं जिनको पटना में रहने की सुविधा नहीं है। रहने से लेकर खाने तक की व्यवस्था सरकार की ओर से मुफ्त है। पांच रुपए रजिस्ट्रेशन है।यहाँ फिजियोथेरापी और आॅकुपेशनलथेरापी का राज्य सरकार के द्वारा आयोजित संयुक्त प्रवेश परीक्षा के बाद 20सीट फिजियोथेरापी तथा 20 सीट आॅकुपेशनलथेरापी के बैचलर पाठ्यक्रम के निर्धारित है।
बिहार के सभी प्राइवेट फिजियोथेरापी संस्थानों में बैचलर डिग्री के बाद मास्टर का कोर्स संचालित किया जाने लगा इस संस्थान में भी मास्टर कोर्स के संचालन हेतु कई बार राज्य सरकार के द्वारा आश्वासन दिया गया मगर तकनीकी कारणों और काॅलेज के प्रशासन की कुछ कमियों के कारण आज तक यहाँ मास्टर पाठ्यक्रम का संचालन नहीं हो पाया।
आज अस्पताल के कृत्रिमअंग बनाने वाले सभी रिटायर हो गए।
इसअस्पताल में पहले पी एंड (प्रोस्थेटिक एंड आर्थोटिक इंजीनियर) थे। मेडल वर्कर, लेदर वर्कर, वुड वर्कर सभी रिटायर हो चुके हैं इसलिए दिव्यांगों के लिए बनने वाले कृत्रिम अंग अब नहीं बन पा रहे हैं। यहां बनने वाले कृत्रिम अंग जूते आदि बाजार से 77 से 80 फीसदी कम कीमत पर मिलते थे। अब दिव्यांग इसे बाहर से खरीदने को मजबूर हैं। कृत्रिम अवयव निर्माण केन्द्र में महीनों से ताला लटका हुआ है।
हड्डीऔर नस से जुड़ी कई बीमारियों का इलाज यहां होता है। लेकिन खास तौर से लकवा, पोलियो, सीपी (सेरेब्रल पलासी), ज्वाइंट पेन, ज्वाइंट जाम (फ्रैक्चर की वजह से), मुंह का लकवा, पैरालाइसिस, कमर दर्द, गर्दन दर्द के इलाज के साथ ही यहां फिजियोथेरेपी आॅकुपेशनल थेरापी के विभिन्न आयामों के द्वारा पुनर्वास चिकित्सा प्रदान की की जाती है।एक्स-रे, दवा सबसे गजब की बात कि यहां एक्स-रे की व्यवस्था ही नहीं है। मरीजों से अन्य सरकारी अस्पतालों से एक्स-रे कराना पड़ता है या प्राइवेट से। पैथोलॉजी जांच की भी यहां व्यवस्था नहीं। इसके लिए भी मरीजों को अन्य अस्पताल रेफर किया जाता है। तीन फ्लोर वाले दिव्यांग अस्पताल में रैंप तो हैं पर लिफ्ट नहीं। दवा तो खैर है ही नहीं। डॉक्टरों की मानें तो यहां मरीजों को दवा की जरूरत नहीं पड़ती। लेकिन सच इसके उलट है। अस्पताल में प्रवेश करते ही जो बोर्ड दिखता है उस पर लिखित उपलब्ध सुविधाओं की सूची में तीसरे नंबर पर स्पष्ट लिखा है- मेडिकल अफसर द्वारा मरीजों की जांचोपरांत नियमानुसार दवाओं का वितरण।
यहां टीचिंग में फिजियोथेरेपी एंड ऑक्युपेशनल थेरेपी के दो एसोसिएट के पद खाली हैं। दो प्रोफेसर के पद भी रिक्त हैं। असिस्टेंट पिछले दस साल से प्रभारी के पद पर हैं। नन टीचिंग में छह फिजियोथेरेपिस्ट के पद खाली हैं। चार ऑक्युपेशनल थेरेपिस्ट के पद खाली हैं। सहायक का एक पद रिक्त पड़ा है। जबकि यही अस्पताल कॉलेज पीएमसीएच और लोकनायक जयप्रकाश नारायण हड्डी सुपरस्पेशलिस्ट अस्पताल में भी अपना ब्रांच चलाता है। सरकार ने फिजियोथेरेपी अकुशल थेरेपी संवर्ग की नियमावली 2014 में बना दी है। बिहार फिजियोथेरेपी एवं ऑक्युपेशनल थेरेपी का नया काउंसिल भी बन रहा है। दिक्कत की बात यह है कि नियमावली में प्राचार्य का पद तो दिया गया है पर इस पद का सृजन ही नहीं किया गया है। इस पद पर बहाली नहीं हो पा रही है। पहले यहां विभागाध्यक्ष ही नियंत्रण पदाधिकारी होते थे। सर्विस कैडर में निदेशक, अपर निदेशक, उपनिदेशक, वरीय अधीक्षक मुख्य फिजियोथेरेपिस्ट और आॅकुपेशनलथेरेपी के पदों को चिह्नित किया गया पर इन पदों का सृजन नहीं होने से इन पदों पर प्रमोशन नहीं हो पा रहा। यहां जिन्हें 2014 में असिस्टेंट प्रोफेसर में समायोजन किया गया है उन्हें इसका वेतनमान नहीं दिया जा रहा। इसके पीछे का कारण उन कर्मियों की योग्यता तो कही आड़े नहीं आ रही ये बात भी शायद गौर फरमाने वाली शायद हो ।आज कालेज के छात्रों का पठ्न पाठन इन्ही आधे अधूरे कर्मियों के बदौलत किया जा रहा है। काॅलेज में आज शिक्षण व्यवस्था भगवान भरोसे चल रही है इसके अलाव गैर तकनीकी कर्मियों के कई पद खाली पड़े हुए हैं, ये राज्य सरकार की विभागीय लापरवाही और काॅलेज प्रशासन की लापरवाही का नतीजा है कि संविदा पर स्वास्थ्य विभाग के द्वारा सृजित पदों को भरने के संबंधित कई निर्देश विभाग के द्वारा दिया गया मगर अस्पताल सह कॉलेज प्रशासन के कान पर जूँ तक नहीं रेंगा ये बहुत बड़ा कारण है वहाँ कालेज की बदहाली का जो वहाँ के लोगों के कारण ही ये हाल बिहार के एकमात्र सरकारी संस्थान जो फिजियोथेरापी आॅकुपेशनलथेरापी संवर्ग की पढाई के लिए बना है।
अस्पताल के मरीजों के लिए यह सुकून वाली बात है कि यहां हर दिन चादर बदले जा रहे हैं और मरीजों को कंबल भी ओढ़ने के लिए दिया जा रहा है।
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