हीमोफीलिया के मरीजों के साथ फिजियोथेरापी और आॅकुपेशनलथेरापी महत्व
हीमोफीलिया एक बहुत ही कम होने वाला जेनेटिक (माता-पिता से बच्चों में होने वाला) रोग है। इस बीमारी में चोट लगने पर खुन का थका नहीं जम पाता जिससे खून बहता ही रहता है। हीमोफीलिया होने के कारण खून में "क्लॉटिंग फैक्टर्स" की कमी हो जाती है।
हीमोफीलिया A - इसमें क्लॉटिंग फैक्टर 8की कमी होती है। यह हीमोफीलिया के 80 प्रतिशत मामलों का कारण होता है। हीमोफीलिया A से ग्रस्त 70 प्रतिशत लोगों में इसका गंभीर रूप ही पाया जाता है।
हीमोफीलिया B - इसको "क्रिसमस रोग" के नाम से भी जाना जाता है। इस रोग में मरीज़ में क्लॉटिंग फैक्टर 9 की कमी हो जाती है।
चिकित्सकों और चिकित्सकीय देखभाल से जुड़े लोग हीमोफीलिया से पीड़ित लोगों को सामान्य जीवन जीने में मदद करने में सहायक है जल्दी जांच, उपचार तक पहुंच और फिजियोथेरेपी की जरूरत इनसब में प्रमुख है। फैक्टर रिप्लेसमेंट थेरेपी और फिजियोथेरेपी के जरिये हीमोफीलिया के मरीज विशेषरूप से बच्चे खून से संबंधित इस जानलेवा बीमारी से लड़ सकते हैं।जानकारी की कमी और हीमोफीलिया का इलाज नहीं हो पाने के कारण जान जाने का खतरा बहुत ज्यादा होता है। चि
सरकारी केंद्रों पर जांच की सुविधा, फैक्टर रिप्लेसमेंट थेरेपी और फिजियोथेरेपी तक पहुंच सुनिश्चित करने में सरकार का सहयोग जरुरी है। हीमोफीलिया फेडरेशन (इंडिया) के मुताबिक, भारत में हीमोफीलिया के 20,000 से ज्यादा रजिस्टर्ड मरीज हैं। हालांकि भारत की आबादी को देखते हुए अनुमान है कि यह संख्या कहीं ज्यादा हो सकती है।
बच्चों को सामान्य और विकलांगता मुक्त करने के लिए प्रारंभिक निदान, उपचार की पहुंच और प्राथमिक रोग निरोधकों की शिषा पर सरकार को जोर देना चाहिए । फिजियोथेरेपी यह सुनिश्चित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है कि वे सक्रिय और स्वस्थ रहें। इस रक्तस्राव विकार, पुनर्वास, व्यावसायिक प्रशिक्षण के उपचार के लिए व्यापक हीमोफिला देखभाल सुविधा प्रदान करने के लिए समाज और सरकार को मिलकर काम करने की आवश्यकता है, ताकि इससे प्रभावित लोग सार्थक रोजगार हासिल कर सके और आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो सके। जबकि वर्तमान में फैक्टर रिप्लेसमेंट थेरेपी उपचार का मुख्य आधार है, भविष्य में जीन थेरेपी हीमोफिलिया (पीडब्लू) वाले व्यक्तियों के लिए आशा की एक किरण हो सकता है।
हीमोफीलिया रोगियों को योग और फिजिकल थैरेपी से मदद मिलती है। पहले चरण में इसमें मरीज को पहले योग व प्राणायाम सिखाया जाता है और फिर दूसरे चरण में कुछ खास फिजिकल एक्टिविटीज कराई जाती हैं जिससे हड्डियां एवं मांसपेशियां मजबूत बनती हैं। तीसरे चरण में आंख बंद कर ध्यान लगाते हुए संतुलन बनाना सिखाया जाता है।हीमोफीलिया के मरीजों को फिजियोथेरापी के माध्यम से मांसपेशियों की मजबूती, न्यूरोमस्कुलर री-एजुकेशन, गैट ट्रेनिंग और रोगी शिक्षा के उपयोग से रक्तस्रावी एपिसोड की संख्या को कम करने में प्रभावी होता है। इसका उपयोग अतिरिक्त विकृतियों (संयुक्त स्थिति को बनाए रखने) के साथ-साथ तीव्र रक्तस्राव के दौरान दर्द और पूरक रक्तस्राव को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है। व्यायाम के संबंध में, चिकित्सक "हीमोफिलिया से पीड़ित व्यक्तियों की पहचान करने में मदद कर सकते हैं, और शारीरिक गतिविधि, व्यायाम, और खेल भागीदारी का आनंद ले सकते हैं जो जोखिमों को दूर करते हैं।
फिजियोथेरापी के साथ आॅकुपेशनल थेरापी हीमोफीलिया के मरीजों को परिवारों की जरूरतों को पूरा करने की योजना विकसित करने के लिए तथा अन्य सदस्यों के स्वास्थ्य देखभाल टीम के साथ काम करता हैं। वे चोटों को रोकने और उनके स्वास्थ्य और वे दैनिक जीवन के लिए आवश्यक गतिविधियों के लिए बाहर ले करने के लिए अपनी क्षमता को बनाए रखने के लिए हीमोफीलिया मरीजों की मदद करने पर भी काम करते।इस तरह की बीमारी से ग्रसित व्यक्ति काम या अवकाश गतिविधियों का आनंद लें करने में असमर्थ होता है, और एक आकुपेशनलथेरापिस्ट भी उनके जीवन के उन क्षेत्रों में भाग लेने के लिए उन्हें सहायता कर सकते हैं।
आज इस तरह के टीम वर्क से हम हीमोफीलिया के मरीजों के बीच उनके तनाव को कम कर सामान्य जीवन में ला सकते है ।इसके दिशा में हमारी सरकारों और समाज को विशेष पहल करनी चाहिए।
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