सपनों का महल अचानक ध्वस्त हो गया..

google.com, pub-6988826151645583, DIRECT, f08c47fec0942fa0 काफी मश्शक्त के बाद पुन: बिहार के बाहर के कालेजों के अभ्यर्थियों को पैनल तैयार कर लिस्ट बना कर मुल प्रमाणपत्रों के सत्यापन की संभावित तिथी को विभाग के द्वारा पत्र तैयार कर आदेश लेने हेतु डायेरेक्टर इन चीफ के पास भेजा गया तब तक मनोज भारती जो की सबसे अंतिम में अपनी याचिका दायर किए थे उच्चन्ययालय पटना में उनकी याचिका मिहीर झा के बेंच में चला गया और फैसले के लिए तिथी भी निधार्रित होकर हाई कोर्ट के बेबसाईट पर अपडेट हो गई।जब इस बात का पता मुझे और अन्य लोगों को चला तो विवेक ने फोन कर मुझे कहा की मनोज भारती को बोलिएउसको अपना याचिका वापस लेने के लिए,मनोज भारती जो मेरे साथ ही बक्सर में कार्यरत थे मैंने उनको विभाग का वो पत्र दिखाया जिसमें उन सभी अभ्यर्थियों को विभाग पुन:प्रमाणपत्र सत्यापन हेतु बुला रही थी जो अन्य सभी इस मामले में याचिकाकर्ता थे उसमें मनोज भारती का नाम भी शामिल था ,मनोज भारती ने फोन के माध्यम से मेरे सामने अपने एडवोकेट को मना किया और याचिका वापस लेने को कहा , उनके एडवोकेट ने उन्हें मिलने के लिए बुलाया ,मैंने अपने सभी सदस्यों को इस बारे में अवगत कराया कि इस तरह की बात हुई है ।
     नवीन जी जिनके मामले में नवीन कुमार के बेंच में जो  फैसला मिला था वो बेहतर था जिसमें उन सभी को शामिल करते हुए रिकाऊसलिंग  की बात थी इस बात को लेकर नवीन जी और अन्य सभी सहभागी आश्वशत थे कि यदि मनोज भारती याचिका वापस भी नहीं लेते तो एक ही तरह का मामला है वैसा ही निर्णय आयेगा।ये बातें नवीन जी ने भी कही जो बाहर के कालेजों के अभ्यर्थियों का प्रतिनिधितत्व कर रहे थे। हमलोग भी उनके कहने पर आश्वशत हो गए और ज्यादा मनोज भारती को इस मामले में जोर नहीं दिए याचिका वापस लेने के लिए इसी कशमकश में हमसब रह गए, मनोज भारती को कह तो हमने दिया ही था मगर उनके एडवोकेट ने पैसे के लालच में याचिका वापस नहीं लिया और ना ही मनोज भारती उससे मिले तब तक फ़ैसले का दिन भी आ गया और मिहीर झा ने अपने फैसले में उनकी याचिक के उपर हमारे लिए सारे रास्ते बंद कर दिए और लिख दिया कि ये आउटडेटेट पैनल है इसको खत्म कर नया तरीके से पुनर्विज्ञापित करते हुए नया पैनल बनाया जाए,अब तो हमारे सभी सदस्यों को सांप सुंघ गया सबके दिल भारी हो गया इतने वर्षो की मेहनत पर कोर्ट के इसफैसले से पानी फिर गया दिलीप बांस ने तो भारती जी को सचिवालय के बाहर मारने के लिए बांस का बल्ला उठा लिया फिर मैंने किसी तरह समझा कर शांत करवाया,इस मामले में हमारी हार का सबसे बड़ा कारण हमारा ओवर कन्फिडेन्स और भारती जी के एडवोकेट को पैसे का लालच रहा ,अब इतना जब हो गया तो भी हमने हिम्मत ना हारी हम सभी ने मिलकर इस मामले में आगे की कार्रवाई के लिए रुख करने का मन बनाया उस दौरान हमारी मीटिंग रंजन ,प्रियरंजन जी के क्लिनिक पर हुआ करती थी वो भी हमारे साथ इस जद्दोजहद में शामिल थे आगे की रुपरेखा वही बैठ हमलोगों ने तैयार करी उसदिन रंजन जी,नवीन,विवेक,मधुप,अजित,दिलीप जी तथा अन्य कई अभ्यर्थी शामिल हुवे आगे की कार्रवाई के लिए तैयारी करनी थी तो हम मानसिक और आर्थिक तौर पर पहले मजबुत होते उसके बाद आगे बढ़ते.........
                                 शेष अगले अंक में...
                                        
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